Delhi: हम जानते हैं कि भारत में चावल खाना काफी पसंद किया जाता है। आज भी कई घरों में चावल के बिना खाना ही पूरा नहीं होता है। भारत का कोई भी हिस्सा हो हर जगह चावल खाना लोगों को पसंद होता ही है। वहीं आज चावल की भी कई तरह की किस्म आ गई हैं। हालांकि आज भी ज़्यादातर लोग व्हाइट चावल या ब्राउन चावल खाना ही पसंद करते हैं।
लेकिन आज हम आपको एक खास तरह के चावल के बारे में बताने जा रहे हैं जो 100 साल में सिर्फ 1-2 बार ही उगते हैं। इन चावलों को बांस का चावल भी कहा जाता है। वहीं खास बात ये भी है कि इस चावल के कई अहम गुण भी होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छे होते हैं। बताया जा रहा है कि ये चावल कमाई का भी अच्छा साधन माने जाते हैं।
काफी फायदेमंद होता है बांस का चावल
आज चावल के 6 हज़ार से भी ज्यादा तरह की किस्म आ चुकी हैं। लेकिन लोग स्वास्थ्य कारणों से ब्राउन राइस खाना ही पसंद करते हैं। लेकिन एक चावल की किस्म और भी है जिसे बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसे बांस के चावल या मुलयरी के नाम से जाना जाता है। बता दें कि ये असल में चावल न होकर बांस का बीज ही होता है। आदिवासी इलाकों में इस तरह के चावल को पकाकर खाया जाता है और उसकी खेती भी की जाती है।
बताया जाता है कि इस चावल में काफी प्रोटीन होता है और ये चावल गेहूं से भी ज्यादा पौष्टिक माना जाता है। इस चावल का रंग भी हल्का हरा होता है। वहीं बता दें कि इस तरह का चावल शुगर मरीजों के लिए भी काफी अच्छा माना जाता है। वहीं इस बांस के चावल में फैट भी नहीं होता है। हालांकि इस चावल को खाने का ज्यादा प्रचलन नहीं है। बहुत लोग तो इसके बारे में जानते भी नहीं हैं।
100 साल में 1-2 उगता है ये चावल
बता दें कि ये चावल बांस का बीज ही होता है। जब बांस का पेड़ अपने अंतिम समय में होता है तब इस तरह का चावल उगता है। आदिवसी इलाकों में इसकी खेती ज्यादा की जाती है जिससे लोगों की अच्छी कमाई भी होती है। बताया जाता है कि इस चावल की खेती में काफी समय लगता है इसलिए बहुत कम लोग इस तरह के चावल की खेती करते हैं।
चेन्नई में इस चावल की कीमत करीब 100 से 120 रूपये प्रति किलो बताई जाती है। जानकारी के मुताबिक ये चावल बांस के पेड़ के जीवन काल में 60 साल में एक बार पैदा होता है और 100 साल में 1-2 बार। इसमें फूल बनने में भी काफी समय लग जाता है।