चरखी दादरी: हाल में ही टोक्यो ओलंपिक खत्म हुआ है। भारत को ओलंपिक में सात मेडल मिले है। मेडल जीतने वाले खिलाडिय़ों पर सरकार और अन्य संस्थान पैसे की बरसात कर रहे है। कई संस्थानों की ओर से बड़े बड़े गिफ्ट भी दिए गए है। लेकिन अभी भी कई खिलाड़ी ऐसे है। जिनको देश के लिए मेडल जीतने के बाद बावजूद प्रोत्साहन मिलना तो दूर जीने के लिए मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो रही है। चरखी दादरी के नेशनल खिलाड़ी दयाकिशन अहलावत मजबूर होकर अब सब्जी बेचने को मजबूर हो गया है।
ढेरो मेडल जीतने के बावजूद नहीं मिली सरकारी मदद
चरखी दादरी के प्रेमनगर इलाके में रहने वाले दयाकिशन ने आठ साल तक नेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने कई मेडल जीते। उन्होंने यूनिवर्सिटी और नेशनल इंटर यूथ प्रतियोगिता में कई पदक जीते। उनके पास पदक और सर्टिफिकेट ढेरों की संख्या में है। इन मेडल में गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मेडल शामिल है। इसके बावजूद उनको सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं दिया गया। एक तरफ सरकार खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन देने की बात करती है। वहीं दूसरी तरफ इस खिलाड़ी को डीसी रेट पर भी नौकरी नसीब नहीं हुई। दयाकिशन अपने सर्टिफिकेट लेकर सरकारी आफिसों के चक्कर काटते रहे। लेकिन किसी भी अधिकारी और मंत्री ने उनकी मदद करना मुनासिब नहीं समझा।
मजबूर होकर सब्जी बेचना किया शुरू
दयाकिशन के पास नौकरी न मिलने के बाद केवल एक ही विकल्प था। वह अपने परिवार का गुजारा चलाने के लिए सब्जी बेचने लगे। जब पत्रकार उनके पास बात करने के लिए गए तो वह फूट फूट कर रोने लगे। उन्होंने खेल नीति को लेकर भी सवाल उठाए। दयाकिशन ने कहा कि अगर सरकार ने खेल नीति में बदलाव नहीं किया होता तो शायद उनको सरकारी नौकरी मिल जाती। अब वह अपने परिवार का गुजारा चलाने के लिए सब्जियां बेच रहे है।दयाकिशन बताते है कि उनको पिछले दो साल में दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। सब्जियों का काम बंद होने के कारण उनको मासाखोर बनना पड़ा। मंडी में बोरियां भी ढोनी पड़ी। वह कहते है कि अगर वह सब्जी बेचने का काम शुरू नहीं करते तो उनके परिवार के सामने रोटी का संकट पड़ जाता।