New delhi : भारतीय सेना में ऐसे कई जवान हुए जिन्हें आज भी कई लोग भगवान की तरह पूजते हैं। आज भी उन जवानों को देश भुला नहीं पाया है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर दी थी। आज हम आपको एक ऐसे ही भारतीय जवान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने भारत चीन युद्ध में महज 21 वर्ष की उम्र में ही अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था।
इस महान शख्स का नाम है जसवंत सिंह रावत। जसवंत ने ही भारत चीन युद्ध में अरुणाचल प्रदेश की रक्षा की थी। जसवंत ने इस दौरान अकेले ही 300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था। आज भी अरुणाचल प्रदेश के लोग जसवंत को भगवान की तरह पूजते हैं। लेकिन जसवंत ने भारतीय सेना में देश हित में अमूल्य योगदान दिया था।
जसवंत ने चीन को सिखाया था सबक
दरअसल हम आपको उस जवान की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने अकेले ही चीनी सेना का सामना किया। जिसके कारण आज अरुणाचल प्रदेश हमारे पास है। इस जवान का नाम जसवंत सिंह है। जसवंत ने का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। कुछ समय बाद ही जसवंत भारतीय सेना का हिस्सा बन गए थे।
लेकिन इसके कुछ ही वर्ष बाद शुरू हुआ भारत चीन युद्ध। सुबह के करीब 5 बजे चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के सेला टॉप के पास हमला बोल दिया था क्यूंकि वे अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करना चाहते थे। इस हमले का जवाब देने के लिए गढ़वाल राइफल्स की डेल्टा कंपनी को भेजा गया। जिसमें जसवंत भी शामिल थे। जसवंत ने स्थिति की गंभीरता को देखकर तुरंत एक्शन लेना शुरू कर दिया।
जसवंत ने अपने सभी साथियों के साथ चीनी सैनिको को जवाब देने की तैयारी कर ली थी। जसवंत और चीनी सैनिकों की ये लड़ाई 17 नवंबर 1962 को शुरू हो गई थी। जसवंत ने अंत समय तक हार नहीं मानी। जसवंत ने अकेले ही चीनी सैनिकों को ढेर करना शुरू कर दिया था। उन्होंने सही रणनीति से करीब 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था। बेशक जसवंत चीनी सैनिकों को रोकने में सफल हो गए लेकिन उन्हें पीछे हटाना थोड़ा मुश्किल हो गया था।
पीछे हटने के आदेश के बाद भी लड़ते रहे जसवंत सिंह
इसके बाद जसवंत को अधिकारियों की तरफ से पीछे हटने के आदेश भी दे दिए गए थे। क्यूंकि उस वक़्त जसवंत की टुकड़ी के पास गोली और बारूद खत्म हो चुके थे। ऐसे में विरोधियों को सबक सीखना आसान नहीं था लेकिन नामुमकिन भी नहीं था। बेशक जसवंत को आदेश दिए गए थे लेकिन जसवंत पीछे नहीं हटे। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक अपने देश से लड़ाई की।
जसवंत की कहानी में दो बहनों सेला और नूरा ने भी अहम भूमिका निभाई थी। दरअसल चीनी सैनिकों को जवाब देते हुए भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो चुके थे। ऐसे में जसवंत ही अकेले बचे थे तब उन्होंने युद्ध की नीति बदलने का फैसला किया। इसके लिए जसवंत नई रणनीति बना रहे थे। अपनी नई रणनीति के अनुसार जसवंत ने चीनी सैनिकों को महसूस कराया कि सारे भारतीय सैनिक अब खत्म हो चुके हैं।
इस दौरान उन्होंने सारे गोला बारूद इकट्ठा कर लिए थे। इस काम में ही सेला और नूरा ने भी जसवंत की खूब मदद की थी। सेला और नूरा ने ही जसवंत के खाने पीने का अच्छे से ध्यान रखा। अब जसवंत और भारतीय सैनिकों की खामोशी को देखते हुए चीनी साईंकोन को भी विश्वास हो चुका था कि अब सभी भारतीय सैनिक मर चुके हैं। इसलिए अब चीनी सेना कब्जे के लिए निश्चिंत होकर आगे बढ़ने लगी थी।
अकेले ही किया 300 चीनी सैनिकों को ढेर
जसवंत ऐसा ही चाहते थे कि चीनी सेना निडर होकर आगे बढ़े ताकि जसवंत उन पर हमला कर पाएँ। ठीक वैसा ही हुआ और मौका देखते ही जसवंत ने चीनी सैनिकों पर गोलियों दागना शुरू कर दिया। इस दौरान जसवंत बार बार अपनी जगह भी बदल रहे थे जैसे कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि टुकड़ी उन पर वारा कर रही हो।
लंबे वक़्त तक जसवंत ने ऐसे ही चीनी सैनिकों का सामना किया। माना जाता है कि इस दौरान जसवंत ने करीब 300 चीनी सैनिकों को अकेले ही ढेर कर दिया था। लेकिन इसके बाद चीनी सैनिकों ने जसवंत को टारगेट कर लिया और जसवंत को भी पता चल चुका था कि अब वे पकड़े जाएंगे। तभी उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
आज भी जारी है उनका नियमित प्रोमोशन
बेशक आज जसवंत को शहीद हुए कई साल बीत गए हैं लेकिन आज भी अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय लोग जसवंत को भगवान की तरह ही पूजते हैं। उनका मानना है कि आज भी जसवंत सीमा पर तैनात हैं और उनकी रक्षा कर रहे हैं। लोगों ने जसवंत की याद में जगह का नाम भी जसवंत गढ़ रखा हुआ है।
वहीं जसवंत गढ़ में एक ऐसा कमरा भी बनाया हुआ है जिसके लिए माना जाता है कि जसवंत इसी घर में रहते थे। वहीं जसवंत का बिस्तर भी रखा हुआ है और उनके जूते भी रोजाना पोलिश किए जाते हैं। उनके बिस्तर को तैनात जवानों द्वारा रोज सजाया जाता है। शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि जसवंत एकमात्र ऐसे शहीद हैं जिनके मरणोंपरांत भी उनका नियमित प्रोमोशन होता है। फिलहाल वे मेजर जनरल के पद कार्यरत हैं।
जसवंत को मरणोंपरांत महावीर चक्र से भी नवाजा गया था। साथ ही जसवंत की जिंदगी पर “72 आवर्स:मार्टियर हू नेवर डाइड” के नाम से एक फिल्म भी बनाई गई थी जिसका निर्देशन अविनाश ध्यानी ने किया था।